वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन के लिये केंचुआ
कैचुएं दो प्रकार के होते हे।
1. गहरी सुरंग बनाने वाले देशी केचुऐं : इस तरह के केचुऐ मृदा को अधिक और कार्बनिक पदार्थो को कम खाते है। ये ज्यादातर वर्षा ऋतु में दिखाई पड़ते है। वर्मीकम्पोस्ट बनाने में इनका प्रयोग प्रायः नही किया जाता है।
2. सतही कैचुएं : इस प्रकार के कैचुऐं मृदा कम और कार्बनिक पदार्थ ज्यादा खाते है इसलिए वर्मीकम्पोस्ट बनाने में सतही कैचुऐं प्रयोग किये जाते है।
यह बात सही है कि यदि फसलों में (खेत में) कचरा एवं कंचुऐं छोडे़ जाये तो उचित परिस्थितियों के अभाव में केचुओं का जिंदा रहना मुश्किल होता है। लेकिन छायादार जगह पर नमी बनाए रखकर पूरे वर्ष आसानी से वर्मीकम्पोस्ट खाद तैयार की जा सकती है। ऊपर बताये गये अनुसार शेड में उचित नमी के कारण गर्मियों में जब बाहर का तापमान पैंतालिस डिग्री सेल्सियस हो जाता है तब भी वर्मीकम्पोस्ट की बैड़ में अधिकतम तापमान तीस से पैंतीस डिग्री सेल्सियस तक ही रहता है। ठीक इसी प्रकार बहुत तेज सर्दी के दिनो मे जब बाहर का तापमान शून्य के पास पहुंचने लगता है तब भी वर्मीकम्पोस्ट की बेड़ में पन्द्रह से बीस डीग्री सेल्सियस तापमान आसानी से रखा जा सकता है। वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिये बतायी गयी केचुऐं की प्रजाति पन्द्रह डिग्री से लेकर पैंतीस डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में खूब अच्छी तरह से अपना काम करती रहती है।
वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन के लिये केंचुओं का चयन
केंचुए ऐनेलिडा समुदाय के कृमि है इनका शरीर बहुखण्डित छल्लों में बटां होता है। इनके अगले सिरे में मुख-द्वार और पिछले सिरे पर गुदा होता है। केंचुए के लिये मिट्टी, सड़ी हुई वनस्पतियों, नमी, हवा तथा गर्मी की आवश्यकता होती है। केंचुआ लगातार मुख से मिट्टी और वनस्पतियां खाता रहता है और इस प्रकार अपना मिट्टी में रास्ता बनाता है और मिट्टी, वनस्पति आंत्र से गुजरकर गुदा से बाहर निकलती है जो कि गोलियों के रूप में सतह पर इकठ्ठी होती रहती है। द्विलिंगी प्राणी होते हुए भी प्रत्येक केंचुआ नीबू की आकृति का अंडा या कोकून देता है। प्रत्येक कोकून से छोटे-छोटे अनेक केंचुऐं विकसित होते है। जो दो सप्ताह में प्रजनन कर कोकून बनाने लगते है।
केचुओं का रिश्ता प्रकृति से 6 अरब वर्ष पुराना है और मनुष्य का केंचुए से केवल 5 हजार से 8 हजार वर्ष का सम्बन्ध है। मनुष्य पहले केंचुओं को केवल भूमि की जुताई में सहायक समझता था, परन्तु अब इसका महत्व भूमि को उपजाऊ बनाने और सड़ी वनस्पतियों को खाद में परिवर्तित करने में किया जाने लगा है।
केचुऐं विश्व में सभी जगह (समुद्र, रेगिस्तान व सदैव हिमपात वाले क्षेत्र को छोड़कर) पाये जाते है। केंचुओं को 10 कुल 900 वंश तथा 3700 प्रजातियों में वर्गीकृत किया गया है। केचुओं में उनके आकार, रंग, भोजन, आवास, वरीयता, प्रजनन क्षमता आदि की दृष्टि से बहुत विभिन्नता पायी जाती है।
केचुऐं आवास के आधार पर निम्न प्रकार के होते है:
- माइक्रोड्रिलाई: ये जलीय होते है जैसे - डाइकोगैस्टर
- मैगाड्रिलाई: ये स्थलीय व धरती पर रहने वाले है। जैसे इसीनिया, फेरिटमा आदि।
अनुकूलनशीलता के गुणों के आधार पर केचुऐं दो प्रकार के होते है:
- पेरेग्रिन: यह अत्याधिक अनुकूलनशील प्रजातिया है। जैसे- आइसीनिया फीटिडा, यूडिलस यूजेनिया।
- एण्डेमिक: इनमे अनुकूलन क्षमता कम होती है। जैसे- लैम्पिटा मारूटी, फेरिटमा पास्थुमा।
भोजन के आधार पर केंचुऐं दो प्रकार के होते है:
- फाइटोफेगस: यह कार्बनिक पदार्थ खाने वाले केचुऐं है। जैसे- इसीनिया फीटिडा।
- जियोफेगस: यह मिट्टी खाने वाले केंचुऐं है। जैसे- लैम्पिटो, फेरिटमा।
परिस्थितिकी के आधार पर केचुओं के प्रकार | ||
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इपीजीइक (Epigeic) | एडोजीइक (Endogeic) | ऐनसिक (Anceic) |
• यह सतह पर रहने वाले (Litter dweller) केचुये होते है | • यह मिटटी की ऊपरी सतह (Top Soil dweller) पर रहने वाले केचुये होते है। | • यह मिटटी में रहने वाले कैचुऐं है। |
• यह बिल नही बनाते है। | • यह क्षैतिज (Horizontal) बिल बनाते है। | • यह लम्बवत (Vertical) बिल बनाते है। |
यह कूड़ा-करकट या भूमि पर सड़ते हुये कार्बनिक पदार्थ तक ही सीमित रहते है। उदाहरण-इसीनिया फोटिडा | यह मिटटी को खाते है। उदाहरण-फेरटिमा | यह मिटटी को खाते है। उदाहरण-लैम्पिटो |
इस प्रकार वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए मेगाड्रिलाई, पेरेग्रिन, फाइटोफेगस व इपीजीइक प्रजाति का प्रयोग किया जाता है। यही प्रजाति वर्मीकम्पोस्ट बनाने में अधिक उपयोगी होती है। इसका जीवन काल छोटा व प्रजनन दर अधिक होती है। उपयुक्त प्रजाति का चयन तथा सही प्रजाति के केंचुऐं की उपलब्धता वर्मीकम्पोस्टिंग के लिये बहुत महत्वपूर्ण है। वर्मीकम्पोस्टिंग के लिये निम्न महत्वपूर्ण प्रजातियाँ प्रयोग की जाती है:
- आइसीनिया फीटिडा
- यूड्रील्स यूजेनी
- पेरियोनिक्स एक्सकेबेट्स
आइसीनिया फीटिडा (रेड वार्म) का प्रयोग वर्मीकम्पोस्ट बनाने में सफलतापूर्वक किया जा रहा है।
इस सफलता के मुख्य कारण हैः
- यह विभिन्न प्रकार के वातावरणीय बदलाव जैसे ताप, नमी एवं जलवायु के प्रति सहनशील होते है।
- केचुओं को कम कार्बनिक पदार्थो की भोजन सामग्री मिलने पर भी जीवन चक्र पूरा करने की क्षमता होती हेै।
- यह पूरे वर्ष सक्रिय रहते है।
- यह बहुत तेजी से भोजन करते है, जिससे कम समय में अधिक वर्मीकम्पोस्ट बनाते है।